सोमवार, 26 अप्रैल 2010
नमन में मन
हरसिंगार झरते हैं
माँ के आशीष रूप धरते हैं
पुलक पुलक
उठता है मन
शाश्वत यह कैसा बंधन
नमन में झुकता है मन
नमन में मन [Photo] थिरकते हैं
साँझ की गहराइयों में
तुम्हारी पायलों के स्वर
नज़र आता है चेहरा
सुकोमल अप्सरा सा
उठाकर बाँह
उँगलियों से दिखाती राह
सितारों से भरा आँगन
नमन में मन [Photo] लहरता है
सुहानी सी उषा में
तुम्हारी रेशमी आँचल
हवा के संग
बुन रहा वात्सल्य का कंबल
सुबह की घाटियों में
प्यार का संबल
सुरीली बीन सा मौसम
नमन में मन [Photo] बसी हो माँ
समय के हर सफ़र में
सुबह सी शाम सी
दिन में बिखरती रौशनी सी
दिशाओं में
मधुर मकरंद सी
दूर हो फिर भी
महक उठता है जीवन
नमन में मन
गुरुवार, 22 अप्रैल 2010
आज फिर
हसरतों को रौशनी से है छुपाया आज फिर
कमजोर हाथों की लकीरें हैं, मगर मिटती नहीं
कह कर यही दिल को है बहलाया आज फिर
और कुछ खोया या पाया, क्या पता? हूँ बेखबर
जिंदगी से एक दिन हमने गंवाया आज फिर
बुधवार, 21 अप्रैल 2010
इश्क में जो कुछ
न होना था
वोही होने लगा
घूम की वादी में
ख़ुशी का कारवां खोने लगा
इश्क में जो कुछ
ना होना था
वोही होने लगा
इश्क में जो कुछ
ना होना था
वोही होने लगा
कौन समझेगा मुहब्बत की
भला मजबूरियाँ
कौन समझेगा मुहब्बत्त की
भला मजबूरियाँ
दो दिलों की चाहतें
दुनिया की नामंजूरियाँ
मुस्कुराने ही से पहले
प्यार क्यूँ रोने लगा
इश्क में जो कुछ
ना होना था
वोही होने लगा
इश्क में जो कुछ
ना होना था
वोही होने लगा
सामने आँखों के मेरे
इश्क का अंजाम है
सामने आँखों के मेरे
इश्क का अंजाम है
है अगर ये ज़िन्दगी तो
मौत किस का नाम है
रंज ओ घूम जागे
नसीबा इश्क का सोने लगा
इश्क में जो कुछ
ना होना था
वोही होने लगा
इश्क में जो कुछ
ना होना था
वोही होने लगा
घूम की वादी में
ख़ुशी का कारवां खोने लगा
इश्क में जो कुछ
ना होना था
वोही होने लगा
jis ki rachna itni sundar
jis ki rachna itni sundar
wo kitna sundar hoga
wo kitna sundar hoga
ho aa..aa..
tujhe dekhne ko main kya
har darpan tarsa karta hai
tujhe dekhne ko main kya
har darpan tarsa karta hai
jyun tulsi ke birwa ko
har aangan tarsa karta hai
har aangan tarsa karta hai
ang ang tera ras ki ganga
ho..ho..
ang ang tera ras ki ganga
roop ka wo saagar hoga
jis ki rachna itni sundar
wo kitna sundar hoga
wo kitna sundar hoga
ho..ho..
raag rang ras ka sangam
aadharat prem kahaani ka
raag rang ras ka sangam
aadharat prem kahaani ka
mere pyaase man mein yoon utri
jyun ret mein jharna paani ka
jyun ret mein jharna paani ka
apna roop dikhaane ko
apna roop dikhaane ko
tere roop mein khud ishwar hota
jis ki rachna itni sundar
wo kitna sundar hoga
wo kitna sundar hoga
wo kitna sundar hoga
ho aa..aa..
मंगलवार, 20 अप्रैल 2010
मुह्बत्त
यकीं नहीं आता
किसी को क्या मुझे खुद भी यकीं नहीं आता
तेरा ख्याल भी तेरी तरह सितमगर है
जहाँ पे चाहिए आना बहीं नहीं आता
जो होने बाला है अब उसकी फिक्र क्या कीजे
जो हो चूका है उसी पर यकीं नहीं आता
यह मेरा दिल है की मंजर उजाड़ बस्ती का
खुले हुए सभी दर मकीं नहीं आता
बिछुरना है तो बिछड़ जा इशी दोराहे पर
की मोड़ आगे सफ़र में कहीं नहीं आता