नजर जो कोई भी तुझ सा हसीं नहीं आता
किसी को क्या मुझे खुद भी यकीं नहीं आता
तेरा ख्याल भी तेरी तरह सितमगर है
जहाँ पे चाहिए आना बहीं नहीं आता
जो होने बाला है अब उसकी फिक्र क्या कीजे
जो हो चूका है उसी पर यकीं नहीं आता
यह मेरा दिल है की मंजर उजाड़ बस्ती का
खुले हुए सभी दर मकीं नहीं आता
बिछुरना है तो बिछड़ जा इशी दोराहे पर
की मोड़ आगे सफ़र में कहीं नहीं आता
मंगलवार, 20 अप्रैल 2010
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shaharyar ki gazal hai
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