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रविवार, 5 सितंबर 2010
ज़हरीला धुआँ
नज़्में भी चीख़तीं हैं
अपने जिस्म की
परछाई देख
कितना ज़हरीला था
वो धुआँ
जो तुम उगलते रहे....!!
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मेरे बारे में
प्रशांत कुमार
कहने को तो कुछ भी कह दूँ..मगर बदलते दौर से डरता हूँ
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