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सोमवार, 30 अगस्त 2010

औरत के शरीर में लोहा

औरत लेती है लोहा हर रोज़
सड़क पर, बस में और हर जगह
पाए जाने वाले आशिकों से

उसका मन हो जाता है लोहे का

बचनी नहीं संवेदनाएँ

बड़े शहर की भाग-दौड़ के बीच

लोहे के चने चबाने जैसा है
दफ़्तर और घर के बीच का संतुलन
कर जाती है वह यह भी आसानी से

जैसे लोहे पर चढ़ाई जाती है सान

उसी तरह वह भी हमेशा
चढ़ी रहती है हाल पर

इतना लोहा होने के बावजूद

एक नन्ही किलकारी
तोड़ देती है दम
उसकी गुनगुनी कोख में
क्योंकि
डॉक्टर कहते हैं
ख़ून में लोहे की कमी थी।

प्रेम

जो कहते हैं प्रेम पराकाष्ठा है
वे ग़लत हैं
जो कहते हैं प्रेम आंदोलन है
वे ग़लत हैं
जो कहते हैं प्रेम समर्पण है
वे भी ग़लत हैं
जो कहते हैं प्रेम पागलपन है
वे भी इसे समझ नहीं पाए

प्रेम
इनमें से कुछ भी नहीं है
प्रेम एक समझौता है
जो दो लोग आपस में करते हैं
दरअसल प्रेम एक सौदा है
जिसमें मोल-भाव की बहुत गुंजाइश है
प्रेम जुआ है
जो परिस्थिति की चौपड़ पर
ज़रूरत के पांसों से खेला जाता है

बुधवार, 18 अगस्त 2010

कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की

कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की, बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी

मुझे अपने ख़्वाबों की बाहों में पाकर, कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी

उसी नींद में कसमसा कसमसाकर, सराहने से तकिये गिराती तो होगी

वही ख्वाब दिन के मुंडेरों पे आके, उसे मन ही मन में लुभाते तो होंगे

कई साज़ सीने की खामोशियों में, मेरी याद में झनझनाते तो होंगे
वो बेसाख्ता धीमे धीमे सुरों में, मेरी धुन में कुछ गुनगुनाती तो होगी

चलो ख़त लिखें जी में आता तो होगा, मगर उंगलियाँ कंप-कंपाती तो होंगी

कलम हाथ से छूट जाता तो होगा, उमंगें कलम फिर उठाती तो होंगी
मेरा नाम अपनी किताबों पे लिखकर, वो दांतों में उंगली दबाती तो होगी

जुबां से कभी उफ़ निकलती तो होगी, बदन धीमे धीमे सुलगता तो होगा

कहीं के कहीं पाँव पड़ते तो होंगे, दुपट्टा ज़मीन पर लटकता तो होगा
कभी सुबह को शाम कहती तो होगी, कभी रात को दिन बताती तो होगी

कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की, बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी

सोमवार, 16 अगस्त 2010

मैं ऐसा क्यों हूँ …

क्यों खुश हो जाता हूँ मैं
तुम्हारी ख़ुशी देखके
क्यों हो जाता हूँ मैं हताश
तुम्हें उदास देखके

चहक सा उठता हूँ मैं क्यों
जब मिलने कि बारी आती हैं
पर क्यों मिलने बाद घंटो
नींद नहीं आती हैं

आँखें बंद करने से क्यों
याद तुम्हारी आती हैं
पर जब खुलती हैं तोह
क्यों फिर तू सामने आती हैं

आँशु तेरे टपकते हैं
तो मैं क्यों सिसकता हूँ
जरा सी तू हस्ती हैं
तो मैं क्यों निखरता हूँ

जब भी देखता हूँ तुम्हें
बस यह सोचता हूँ
पूछो तुमसे या तुमसे कहूँ
रखूं दिल में ये बात या कह दूँ

सुन जरा बस इतना बता
मैं ऐसा क्यों हूँ
मैं ऐसा क्यों हूँ

आदमी आदमी को क्या देगा

आदमी आदमी को क्या देगा
जो भी देगा वोही खुदा देगा

मेरा कातिल ही मेरा मुन्सिफ है
क्या मेरे हक में फैसला देगा

ज़िंदगी को करीब से देखो
इसका चेहरा तुम्हें रुला देगा

हमसे पूछो दोस्ती का सिला
दुश्मनों का भी दिल हिला देगा

इश्क का ज़हर पी लियाफाकिर
अब मसीहा भी क्या दवा देगा

तेरी आँखों सी आंखें

तेरी आँखों सी आंखें
आज एक चेहरे पे देखि हैं
वोही रंगत, बनावट
और वेसी बे - रुखी उन मैं
बिचरते वक़्त जो मैने
तेरी आँखों मैं देखी थी
तेरी आँखों सी आँखों ने
मुझे एक पल को देखा था
वो पल एक आम सा पल था
पुराने कितने मौसम ,
कितने मंज़र मैने देखे थे
मेरी जान मैं ये समझा था
तेरी आँखों सी आंखें जब
मेरी आँखों को देखेंगी
तो एक लम्हे को सोचेंगी
के इन आँखों को पहले भी
किसी चेहरे पे देखा है
मगर इन झील आँखों मैं
शनासाई नही जगी
मेरी आंखें !!
तेरी आँखों सी आँखों के लिए
कब ख़ास आंखें थीं
तेरी आँखों ने शयेद ये
कई चेहरों पे देखी हों
के ये तो आम आंखें हैं
मैं ऐसा सोच सकता था
मगर मैं कीया करूँ दिल का
जो अब यह याद रखेगा
तेरी आँखों सी आंखें
मैं ने एक चेहरे पे देखि थीं !!
फिर उस कबाड़ कितने दिन
मेरी आँखों मैं सावन था ..

बताओ कैसा लगता है …?

बताओ कैसा लगता है…?
किसी वीरान रास्ते पे,
किसी अन्जान रास्ते पे,
किसी का साथ मिल जाना,
ख़ुशी के फूल खिल जाना ,
बताओ कैसा लगता है …?
और उस के बाद फिर एक दिन ,
किसी का यूं बिछर जाना ,
सभी रंगों का मिट जाना ,
वो बंद मूट्ठी में हाथों की ,
फ़क़त कुछ रेत रह जाना ,
बताओ कैसा लगता है …?

रविवार, 1 अगस्त 2010

वर्बल से स्‍ट्रॉन्‍ग है नॉनवर्बल




आपके एक्प्रेशंस भी आपकी पर्सनालिटी को दिखाते हैं। आप क्या औरकैसे पहनते, बोलते, चलते और उठते-बैठते हैं, ये आपके शब्दों से ज्यादाआपके बारे में कहता है। आप इसे नॉनवर्बल कम्युनिकेशन भी कहसकते हैं। इस अद्भुत भाषा के अपने अलग ही तौर-तरीके हैं, जो कुछ इसप्रकार हैं-

‍‍ आई कॉन्टेक्ट
नॉनवर्बल कम्युनिकेशन में अहम भूमिका आँखों की ही होती है। ऐसे लोग, जो नजरें बचा के बातें करते हैं औरबातचीत के दौरान आई कॉन्टेक्ट की बजाय सिर नीचे करके बातें करते हैं, उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है।यही कारण है कि ऐसे लोग कभी भी अपनी बात के समर्थन में किसी प्रकार का तथ्य प्रस्तुत नहीं कर पाते औरअगर कर भी देते हैं तो लोग उन पर भरोसा करने से कतराते हैं। आपके आत्मविश्वास का प्रतीक आपकी आँखें हीहोती हैं। इसलिए किसी से बातचीत के दौरान सिर को नीचे की ओर झुकाएँ, उठाकर रखें।

बॉडी जेस्चर्स
नॉनवर्बल कम्युनिकेशन में शारीरिक प्रतिक्रियाओं का भी खासा महत्व होता है। आपका बैठना, खड़े होना औरचलना सभी कुछ किसी किसी प्रकार के संवाद को दर्शाता है। आप किसी के सामने खुद को जिस रूप में प्रदर्शितकरते हैं, उससे आपके व्यक्तित्व के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। ज्यादा अकड़कर चलने वाले लोग जिद्दी औरअपने आगे किसी को कुछ समझने वाले माने जाते हैं। इसके उलट हमेशा झुके-झुके रहने वाले व्यक्ति मेंढीलापन और आलस झलकता है।

दूरी का भी रखें ध्यान
कुछ लोग आदतन बातचीत के दौरान सामने वाले को बार-बार छूते हैं या फिर मजाक में उसकी पीठ या कंधे परतेजी से हाथ मार देते हैं। इस तरह के क्रिया-कलापों से लोग आपसे कतराने लगते हैं। सामने बैठे व्यक्ति से एकनियत दूरी बनाकर रखना मैनर्स की श्रेणी में आता है।


चेहरे का भाव
आपके मुँह से जो शब्द निकल रहे हैं, उनका समर्थन आपका चेहरा कर रहा है या नहीं, यह भी महत्वपूर्ण है। चेहराकभी झूठ नहीं बोलता। इसलिए किसी से मिलने जा रहे हैं तो मन से खुश होते हुए मिलें। इससे आपके चेहरे परस्वयं ही खुशी का भाव नजर आने लगेगा।

साइन लैंग्वेज पर ध्यान
बातचीत के दौरान जितना हो सके संकेतों के प्रयोग से बचें। कुछ बुरा लगने पर मुँह बिचकाना, आँख मारना याकिसी को संकेत से पास बुलाना, ये सब बुरी आदतों में शामिल है। जो संकेत किसी को खुशी दें, उन्हें इस्तेमालकरना गलत नहीं, लेकिन जिनसे किसी के मान-सम्मान को चोट पहुँचे, उनसे दूरी बना के रखने में ही भलाई है।

समय पर ध्यान देते रहें
खुद ही बोलते रहना और सामने वाले को बोलने का मौका ही देना, यह भी सही नहीं है। बोलने की बारी आने परयह ध्यान दें कि आपकी बातें तर्कसंगत हों। कम शब्दों में पूरी बात कह जाने का जो प्रभाव पड़ता है, वह घंटोंभाषण देने के बाद भी नजर नहीं आता है।

पहनावा भी बोलता है
आपके पहनने-ओढ़ने का तरीका भी एक तरह का संवाद है। आप जो भी पहनते हैं या जैसे भी पहनते हैं, उससे एकविशेष संकेत मिलता है। हमेशा ऐसे कपड़े पहनें, जो आपके लिए आरामदायक हों। कपड़ों के चुनाव में खुद की रायको महत्व दें, लेकिन कभी-कभी किसी खास मौके पर अन्य की राय भी जान लेना चाहिए। जो भी पहनें इस भरोसेके साथ पहनें कि आप उसमें अच्छे लग रहे हैं। इससे आपका आत्मविश्वास बढ़ता है।