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रविवार, 5 सितंबर 2010

ज़हरीला धुआँ

नज़्में भी चीख़तीं हैं
अपने जिस्म की
परछाई देख

कितना ज़हरीला था
वो धुआँ
जो तुम उगलते रहे....!!

सोमवार, 30 अगस्त 2010

औरत के शरीर में लोहा

औरत लेती है लोहा हर रोज़
सड़क पर, बस में और हर जगह
पाए जाने वाले आशिकों से

उसका मन हो जाता है लोहे का

बचनी नहीं संवेदनाएँ

बड़े शहर की भाग-दौड़ के बीच

लोहे के चने चबाने जैसा है
दफ़्तर और घर के बीच का संतुलन
कर जाती है वह यह भी आसानी से

जैसे लोहे पर चढ़ाई जाती है सान

उसी तरह वह भी हमेशा
चढ़ी रहती है हाल पर

इतना लोहा होने के बावजूद

एक नन्ही किलकारी
तोड़ देती है दम
उसकी गुनगुनी कोख में
क्योंकि
डॉक्टर कहते हैं
ख़ून में लोहे की कमी थी।

प्रेम

जो कहते हैं प्रेम पराकाष्ठा है
वे ग़लत हैं
जो कहते हैं प्रेम आंदोलन है
वे ग़लत हैं
जो कहते हैं प्रेम समर्पण है
वे भी ग़लत हैं
जो कहते हैं प्रेम पागलपन है
वे भी इसे समझ नहीं पाए

प्रेम
इनमें से कुछ भी नहीं है
प्रेम एक समझौता है
जो दो लोग आपस में करते हैं
दरअसल प्रेम एक सौदा है
जिसमें मोल-भाव की बहुत गुंजाइश है
प्रेम जुआ है
जो परिस्थिति की चौपड़ पर
ज़रूरत के पांसों से खेला जाता है

बुधवार, 18 अगस्त 2010

कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की

कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की, बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी

मुझे अपने ख़्वाबों की बाहों में पाकर, कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी

उसी नींद में कसमसा कसमसाकर, सराहने से तकिये गिराती तो होगी

वही ख्वाब दिन के मुंडेरों पे आके, उसे मन ही मन में लुभाते तो होंगे

कई साज़ सीने की खामोशियों में, मेरी याद में झनझनाते तो होंगे
वो बेसाख्ता धीमे धीमे सुरों में, मेरी धुन में कुछ गुनगुनाती तो होगी

चलो ख़त लिखें जी में आता तो होगा, मगर उंगलियाँ कंप-कंपाती तो होंगी

कलम हाथ से छूट जाता तो होगा, उमंगें कलम फिर उठाती तो होंगी
मेरा नाम अपनी किताबों पे लिखकर, वो दांतों में उंगली दबाती तो होगी

जुबां से कभी उफ़ निकलती तो होगी, बदन धीमे धीमे सुलगता तो होगा

कहीं के कहीं पाँव पड़ते तो होंगे, दुपट्टा ज़मीन पर लटकता तो होगा
कभी सुबह को शाम कहती तो होगी, कभी रात को दिन बताती तो होगी

कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की, बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी

सोमवार, 16 अगस्त 2010

मैं ऐसा क्यों हूँ …

क्यों खुश हो जाता हूँ मैं
तुम्हारी ख़ुशी देखके
क्यों हो जाता हूँ मैं हताश
तुम्हें उदास देखके

चहक सा उठता हूँ मैं क्यों
जब मिलने कि बारी आती हैं
पर क्यों मिलने बाद घंटो
नींद नहीं आती हैं

आँखें बंद करने से क्यों
याद तुम्हारी आती हैं
पर जब खुलती हैं तोह
क्यों फिर तू सामने आती हैं

आँशु तेरे टपकते हैं
तो मैं क्यों सिसकता हूँ
जरा सी तू हस्ती हैं
तो मैं क्यों निखरता हूँ

जब भी देखता हूँ तुम्हें
बस यह सोचता हूँ
पूछो तुमसे या तुमसे कहूँ
रखूं दिल में ये बात या कह दूँ

सुन जरा बस इतना बता
मैं ऐसा क्यों हूँ
मैं ऐसा क्यों हूँ

आदमी आदमी को क्या देगा

आदमी आदमी को क्या देगा
जो भी देगा वोही खुदा देगा

मेरा कातिल ही मेरा मुन्सिफ है
क्या मेरे हक में फैसला देगा

ज़िंदगी को करीब से देखो
इसका चेहरा तुम्हें रुला देगा

हमसे पूछो दोस्ती का सिला
दुश्मनों का भी दिल हिला देगा

इश्क का ज़हर पी लियाफाकिर
अब मसीहा भी क्या दवा देगा

तेरी आँखों सी आंखें

तेरी आँखों सी आंखें
आज एक चेहरे पे देखि हैं
वोही रंगत, बनावट
और वेसी बे - रुखी उन मैं
बिचरते वक़्त जो मैने
तेरी आँखों मैं देखी थी
तेरी आँखों सी आँखों ने
मुझे एक पल को देखा था
वो पल एक आम सा पल था
पुराने कितने मौसम ,
कितने मंज़र मैने देखे थे
मेरी जान मैं ये समझा था
तेरी आँखों सी आंखें जब
मेरी आँखों को देखेंगी
तो एक लम्हे को सोचेंगी
के इन आँखों को पहले भी
किसी चेहरे पे देखा है
मगर इन झील आँखों मैं
शनासाई नही जगी
मेरी आंखें !!
तेरी आँखों सी आँखों के लिए
कब ख़ास आंखें थीं
तेरी आँखों ने शयेद ये
कई चेहरों पे देखी हों
के ये तो आम आंखें हैं
मैं ऐसा सोच सकता था
मगर मैं कीया करूँ दिल का
जो अब यह याद रखेगा
तेरी आँखों सी आंखें
मैं ने एक चेहरे पे देखि थीं !!
फिर उस कबाड़ कितने दिन
मेरी आँखों मैं सावन था ..

बताओ कैसा लगता है …?

बताओ कैसा लगता है…?
किसी वीरान रास्ते पे,
किसी अन्जान रास्ते पे,
किसी का साथ मिल जाना,
ख़ुशी के फूल खिल जाना ,
बताओ कैसा लगता है …?
और उस के बाद फिर एक दिन ,
किसी का यूं बिछर जाना ,
सभी रंगों का मिट जाना ,
वो बंद मूट्ठी में हाथों की ,
फ़क़त कुछ रेत रह जाना ,
बताओ कैसा लगता है …?

रविवार, 1 अगस्त 2010

वर्बल से स्‍ट्रॉन्‍ग है नॉनवर्बल




आपके एक्प्रेशंस भी आपकी पर्सनालिटी को दिखाते हैं। आप क्या औरकैसे पहनते, बोलते, चलते और उठते-बैठते हैं, ये आपके शब्दों से ज्यादाआपके बारे में कहता है। आप इसे नॉनवर्बल कम्युनिकेशन भी कहसकते हैं। इस अद्भुत भाषा के अपने अलग ही तौर-तरीके हैं, जो कुछ इसप्रकार हैं-

‍‍ आई कॉन्टेक्ट
नॉनवर्बल कम्युनिकेशन में अहम भूमिका आँखों की ही होती है। ऐसे लोग, जो नजरें बचा के बातें करते हैं औरबातचीत के दौरान आई कॉन्टेक्ट की बजाय सिर नीचे करके बातें करते हैं, उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है।यही कारण है कि ऐसे लोग कभी भी अपनी बात के समर्थन में किसी प्रकार का तथ्य प्रस्तुत नहीं कर पाते औरअगर कर भी देते हैं तो लोग उन पर भरोसा करने से कतराते हैं। आपके आत्मविश्वास का प्रतीक आपकी आँखें हीहोती हैं। इसलिए किसी से बातचीत के दौरान सिर को नीचे की ओर झुकाएँ, उठाकर रखें।

बॉडी जेस्चर्स
नॉनवर्बल कम्युनिकेशन में शारीरिक प्रतिक्रियाओं का भी खासा महत्व होता है। आपका बैठना, खड़े होना औरचलना सभी कुछ किसी किसी प्रकार के संवाद को दर्शाता है। आप किसी के सामने खुद को जिस रूप में प्रदर्शितकरते हैं, उससे आपके व्यक्तित्व के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। ज्यादा अकड़कर चलने वाले लोग जिद्दी औरअपने आगे किसी को कुछ समझने वाले माने जाते हैं। इसके उलट हमेशा झुके-झुके रहने वाले व्यक्ति मेंढीलापन और आलस झलकता है।

दूरी का भी रखें ध्यान
कुछ लोग आदतन बातचीत के दौरान सामने वाले को बार-बार छूते हैं या फिर मजाक में उसकी पीठ या कंधे परतेजी से हाथ मार देते हैं। इस तरह के क्रिया-कलापों से लोग आपसे कतराने लगते हैं। सामने बैठे व्यक्ति से एकनियत दूरी बनाकर रखना मैनर्स की श्रेणी में आता है।


चेहरे का भाव
आपके मुँह से जो शब्द निकल रहे हैं, उनका समर्थन आपका चेहरा कर रहा है या नहीं, यह भी महत्वपूर्ण है। चेहराकभी झूठ नहीं बोलता। इसलिए किसी से मिलने जा रहे हैं तो मन से खुश होते हुए मिलें। इससे आपके चेहरे परस्वयं ही खुशी का भाव नजर आने लगेगा।

साइन लैंग्वेज पर ध्यान
बातचीत के दौरान जितना हो सके संकेतों के प्रयोग से बचें। कुछ बुरा लगने पर मुँह बिचकाना, आँख मारना याकिसी को संकेत से पास बुलाना, ये सब बुरी आदतों में शामिल है। जो संकेत किसी को खुशी दें, उन्हें इस्तेमालकरना गलत नहीं, लेकिन जिनसे किसी के मान-सम्मान को चोट पहुँचे, उनसे दूरी बना के रखने में ही भलाई है।

समय पर ध्यान देते रहें
खुद ही बोलते रहना और सामने वाले को बोलने का मौका ही देना, यह भी सही नहीं है। बोलने की बारी आने परयह ध्यान दें कि आपकी बातें तर्कसंगत हों। कम शब्दों में पूरी बात कह जाने का जो प्रभाव पड़ता है, वह घंटोंभाषण देने के बाद भी नजर नहीं आता है।

पहनावा भी बोलता है
आपके पहनने-ओढ़ने का तरीका भी एक तरह का संवाद है। आप जो भी पहनते हैं या जैसे भी पहनते हैं, उससे एकविशेष संकेत मिलता है। हमेशा ऐसे कपड़े पहनें, जो आपके लिए आरामदायक हों। कपड़ों के चुनाव में खुद की रायको महत्व दें, लेकिन कभी-कभी किसी खास मौके पर अन्य की राय भी जान लेना चाहिए। जो भी पहनें इस भरोसेके साथ पहनें कि आप उसमें अच्छे लग रहे हैं। इससे आपका आत्मविश्वास बढ़ता है।

शनिवार, 31 जुलाई 2010

सच को स्वीकारें और निर्णय लें

हेलो दोस्तो! प्यार करने वाले हमेशा अपने भीतर एक अलग ही दुनिया बसा लेते हैं। पूरी व्यवस्था को वे बहुत ही हिकारत भरी नजरों से देखते हैं। उन्हें लगता है उनकी भावना में इतनी ताकत है कि सदियों से चले आ रहे नियम कानूनों की उन्हें कोई आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। उनका मन इतना सच्चा है कि दुनिया की सारी मक्कारी भरी चाल उल्टी पड़ जाएगी। उनकी नीयत इतनी साफ है कि अन्य रिश्तों की चालाकी भरी धूल उसे मैला नहीं कर पाएगी।

पर, थोड़ी सी विपरीत परिस्थिति आती है दो प्यार करने वाले में एक, दूसरे को शक की नजर से देखने लगता है। वे अपनी भावना की गहराई को एक बार फिर मापने की कोशिश करते हैं। कई बार वे यह जानकर हैरान हो जाते हैं कि उनके अन्य रिश्तों के आँसुओं की बाढ़ में प्यार की कश्ती हिचकोले लेती हुई कब डूब गई उन्हें पता ही नहीं चला। और तब, मन ही मन उन्हें शर्मिंदगी होती है कि हमारे सारे दावे कितने खोखले थे। उन्हें आश्चर्य होता है कि क्या वे सचमुच अपने मन को नहीं पहचानते थे।

कोमल (बदला हुआ नाम) भी अपने मन को इतनी ही हैरानी से देख रही हैं। उन्हें अपने मन की नई हलचल पर आश्चर्य हो रहा है। अपने प्यार और विचार की परिपक्वता पर उन्हें बेइंतहा भरोसा था। पर, जरा से बदले हुए हालात के साथ ही अपने डगमगाते कदम पर वह विचलित हैं।

कोमल अन्य जाति के एक लड़के से प्रेम करती हैं। जमाने के कड़े रुख को देखते हुए दोनों ने फैसला किया कि वे शादी नहीं करेंगे पर एक-दूसरे का साथ निभाएंगे। वे आपस में यह प्रण कर बैठे कि चाहे उन्हें घर वालों के दबाव में शादी ही क्यों न करनी पड़े पर उनकी प्रतिबद्धता केवल एक-दूसरे के लिए रहेगी। वे दुनियादारी केवल व्यवहारिकता के लिए निभाएँगे। दोनों नौकरी करते हैं। प्रेम के दो वर्ष पलक झपकते निकल गए क्योंकि तब उन दोनों के सिवा वहाँ खलल डालने वाला कोई नहीं था।

पिछले माह लड़के के माँ-बाप ने उसकी मंगनी कहीं और कर दी। इस मंगनी के बाद कोमल बहुत ही असुरक्षित महसूस करने लगी जबकि उनके दोस्त ने यह भरोसा दिलाया है कि वे यह सब केवल घरवालों के दबाव में कर रहे हैं। पर इस दिलासे का कोमल पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। बस सगाई की रस्म से ही वह अपने आपको उससे दूर महसूस करने लगी हैं।

कोमल की हैरानी और परेशानी का एक और बड़ा सबब है, वह है, उसके दिल पर किसी और की दस्तक का। अभी अपने प्रेमी की सगाई को महीना भी नहीं बीता है और वह अपने एक अन्य सहयोगी के प्रति आकर्षण महसूस करने लगी हैं। अपने दिल के इस रवैये पर वह बेहद क्षुब्ध हैं। उसे लगता है आखिर क्यों उसका अमर प्रेम कहीं गुम होता जा रहा है और कोई दूसरी छवि उसके दिल के करीब बसेरा करने लगी है। वह अपने आप से खफा है। उसे समझ नहीं आता कि जो बात पहले से तय थी उसके होने पर वह क्यों बौखला गई। नए प्रेम का आकर्षण उसे अनैतिक लगता है। वह इस कशमकश से निकलना चाहती है।

कोमल जी, जो कुछ घटता है और जिसे हम स्वीकार करते हैं वही सच है, बाकी सब मन को खुश करने वाली बातें हैं। आप दोनों में ही एक प्रकार की व्यवहारिकता है जिसके कारण ही आपने दुनिया का विरोध न झेलने का निर्णय लिया। कुछ लोग इस समाज में शादी प्रथा में विश्वास नहीं करते हैं इसलिए वे बिना किसी बंधन के भी एक-दूसरे को प्यार करते हैं और आजाद रहते हुए भी प्रतिबद्ध रहते हैं। पर, आपकी वह सोच नहीं थी। आप लोग जमाने के डर से किसी अन्य के साथ घर बसाने को तैयार थे और एक काल्पनिक चाहत थी कि आपका प्यार बचा रहे। ऐसा नहीं होता है। इस ताश के महल को ढहना ही था। बिना आधार के इस दुनिया में कोई भी चीज नहीं टिक सकती है।

शादी तो बहुत दूर की बात है मात्र सगाई ने ही आपकी मन की दुनिया बदल डाली। जब हम भीतर से घबराए हुए होते हैं तो खुद को सुरक्षित करने के लिए जल्दबाजी में फैसले करते हैं। जल्दबाजी किसी भी स्थिति में सही नहीं है। खासकर जब हम आहत हों या विचलित हों। यह बात तो पूरी तरह तय है कि किसी अन्य से शादी करके आप लोगों का प्यार बरकरार नहीं रह सकता है। इसका सबूत आपके दिल ने दे ही दिया है। हमें भरोसा दूसरे के व्यवहार से मिलता है। सामने वाले का व्यवहार ही भरोसे का आधार होता है। व्यवहार के बदलाव से विश्वास शक में बदलता है।

चूँकि आपके दोस्त का व्यवहार सगाई के बाद थोड़ा बदला हुआ होगा इसलिए आप पहले जैसा आत्मविश्वास महसूस नहीं कर पा रही हैं। या यूँ कहें कि सगाई के बाद वह आपके कदमों पर सिर रखकर क्यों नहीं रोया कि बहुत हो गई दुनियादारी चलो शादी कर लेते हैं। किसी और को मैं अपने जीवन में सहन नहीं कर सकता। चूँकि ये सब नहीं हुआ इसलिए आपका मन खट्टा हो गया। आपका भरोसा टूट गया। आपने भी नई राह तलाश करनी चाही।

बीते हुए अफसाने आए हैं रुलाने


ज्यादा दिन नहीं हुए इस किस्से को। आईआईटी के टेक्सटाइल इंजीनियरिंग में अध्ययनरत तृतीय वर्ष की छात्रा प्रगति का शिमला के होटल में रूड़की आईआईटी में तीसरे साल के विद्यार्थी उसके बॉयफ्रेंड गौरव वर्मा ने कत्ल कर दिया। बाद में गौरव ने स्वीकारा कि उसने ही प्रगति की हत्या की है, क्योंकि प्रगति ने उसे बताया कि उसका इससे पहले भी किसी से संबंध था।

इस घटना ने एक बार फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या वर्तमान रिश्तों को बचाने के लिए अतीत के रिश्तों को दफनाना ही चाहिए? दरअसल इसमें भी महिलाओं और पुरुषों का दृष्टिकोण अलग-अलग है। पुरुष अपने संबंधों को अब भी बड़े गर्व के साथ स्वीकारते हैं, लेकिन महिलाएँ स्वीकारते हुए ही हिचकिचाएँगी। हिन्दी फिल्मों में या कहानियों में उम्रदराज महिलाएँ अक्सर युवा लड़कियों को अपना अतीत छिपाने का सुझाव देती नजर आती हैं। दरअसल इस मामले में अनुभव और सिद्धांत अलग-अलग होते हैं।

सिद्धांत कहते हैं कि स्वस्थ रिश्तों में आपसी विश्वास जरूरी है और इसके लिए किसी भी तरह का दुराव-छिपाव नहीं होना चाहिए। संक्षेप में सबकुछ एक-दूसरे को बता दिया जाना चाहिए, लेकिन अनुभव वह है जो शिमला में प्रगति के साथ हुआ। फिर भी इस दिनों युवाओं के सोच में बदलाव आया है।

सॉफ्टवेयर कंपनी में इंजीनियर रूपल महेश्वरी इस मामले में कहती हैं कि पुरुष स्वभाव से ही पजेसिव होते हैं, यदि थोड़ा बाद में उन्हें पिछले रिश्ते के बारे में पता चले तो कहा नहीं जा सकता है कि वे किस तरह से प्रतिक्रिया दें।

इसी तरह कम्प्यूटर व्यवसायी मुदित मल्होत्रा पुरुषों को सुझाव देते हैं कि यदि आपमें सच को सह पाने की क्षमता हो तो ही आप इस पचड़े में पड़ें। यदि नहीं है तो फिर अपने साथी का अतीत जानने की पहल कतई न करें।

काउंसलर डॉ. सुशील गोरे कहते हैं- एक रिश्ता विश्वास और ईमानदारी से मजबूत होता है। कहीं हम दोहरा चरित्र अख्तियार कर लेते हैं, हम सच कह तो सकते हैं, लेकिन सच को सह पाने का साहस नहीं जुटा पाते हैं। प्रगति ने सच कह पाने का साहस दिखाया, उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए, लेकिन उसका साथी उसे सह नहीं पाया। युवा आजकल टीवी शोज से सीख रहे हैं कि रिश्तों में किस तरह से षड्यंत्र किए जा सकते हैं।

इसी तरह से होटल व्यवसायी शिमित आहूजा स्पष्ट कहते हैं कि मैं नहीं जानना चाहता कि मेरी गर्लफ्रेंड का पास्ट क्या है? मैं इस बारे में ज्यादा परेशान भी नहीं होता। यदि मैं उसका अतीत जानना चाहूँगा तो फिर वह भी मेरा अतीत जानना चाहेगी। फिर मैं हमेशा उसके पुराने रिश्ते से खुद को कंपेयर करूँगा और यह हमारे रिश्ते को ही बरबाद कर देगा। वह यदि मुझसे पूछेगी कि क्या पहले मेरा किसी से अफेयर था, तो मैं इंकार कर दूँगा।

एक तरफ जहाँ लड़कियाँ रिश्तों में ईमानदारी चाहती हैं, वहीं लड़के इस मामले में पलायनवादी हो जाते हैं। वे यह पचा नहीं पाते कि उनकी साथी का पहले भी कोई रिश्ता रहा होगा... अब कारण क्या है, इसके लिए अलग से विश्लेषण की जरूरत पड़ेगी।

नया-नया कॉलेज, नई-नई डेटिंग

स्टूडेंट्‍स जब स्कूल की दहलीज पार कर कॉलेज पहुँचते हैं तो उन्हें वहाँ खुला माहौल मिलता है। जीवन के इस मोड़ पर उनका अधिक खुशनुमा और कुछ-कुछ रोमांचक माहौल से सामना होता है। इस खुले माहौल के साथ कॉलेज कैम्पस में हर स्टूडेंट्‍स किसी दूसरे को अट्रेक्ट और इम्प्रेस करना चाहता है।

यह बहुत स्वाभाविक भी है क्योंकि यही वह जगह है जहाँ नए-नए दोस्त मिलते हैं और नए संबंध बनते हैं। कई बार कुछ अलग अंदाज में, कुछ-कुछ रूमानियत में शुरू हुई यह दोस्ती जिंदगी भर के हमसफर से भी मिला देती है और कभी-कभी किसी ऐसे प्यारे दोस्त से भी जिसे जिंदगीभर याद रखा जा सके।

इसलिए इन दिनों कॉलेज स्टूडेंट्‍स में डेटिंग का जबर्दस्त क्रेज है। हर कोई किसी को डेट पर ले जाना चाहता है लेकिन जो ितना क्रिएटिव होता है वह आसानी से किसी को डेट पर ले जा सकता है। कैंपस लाइफ स्टाइल का एक अभिन्न हिस्सा बन चुकी है डेटिंग। फर्स्ट डेट के लिए प्रपोज करने हेतु आपका कुछ क्रिएटिव होना जरूरी है वरना बोरिंग और आजमाए हुए तरीके आपको हताश-निराश कर सकते हैं।

इसलिए स्टूडेंट विनीत वाही कहते हैं कि फर्स्ट डेट के बारे में युवाओं में उत्सुकता होती है, लेकिन यह उत्सुकता ही कई बार इस फर्स्ट डेट को लास्ट डेट में बदल देती है। कई बार युवा फर्स्ट डेट पर सामने वाले शख्स से उसकी जिंदगी के बारे में कुछ ऐसे अनचाहे सवाल पूछ डालते हैं जो उनके दिल को ठेस पहुँचा देते हैं।

इसलिए दूसरे के बीते जीवन में दखलंदाजी न कर हलकी-फुलकी बातें करना चाहिए। इसमें आप अपने सेंस ऑफ ह्यूमर का इस्तेमाल कर इम्प्रेस कर सकते हैं और डेट को बोरिंग होने से बचा सकते हैं।


बेहतर होगा डेटिंग पर बातचीत की शुरुआत सामने वाले की हॉबीज और अन्य पसंदीदा चीजों पर की जाए। लेकिन डेट पर झूठ बोलने और बढ़ा-चढ़ाकर कुछ बात करने से बचना चाहिए। क्षितिज भूटानी कहते हैं कि आप किसी भी तरह के बनावटीपन से बचें। सबसे अच्छा यह है कि सरल व्यवहार करें और स्वाभाविक ढंग से मिलें।

कई बार डेटिंग पर स्टूडेंट किसी की स्टाइल मारने के चक्कर में मामला बिगाड़ देते हैं। प्रतीक व्यास मानते हैं कि डेटिंग पर जाना बुरी बात नहीं है लेकिन अपनी किसी हरकत या बात से साथी को असुविधा में न डालें। तभी आपकी डेट कामयाब हो सकती है। मनोज साहू कहते हैं कि आमतौर पर युवा खूबसूरत शख्स के साथ डेट पर जाना पसंद करते हैं लेकिन डेट पर जा रहे हैं तो उस शख्स के बारे में अच्छी तरह से जान-समझ लें।

1. प्रपोज करने के पहले नर्वस न हों।

2. खूबसूरती और कल्पनाशील तरीके से काम लें।

3. शुरुआत प्यारी सी फ्‍लर्टिंग से करें।

4. इजहार का कोई नया और अनूठा तरीका ईजाद करें।

5. बॉडी लैंग्वेज पर ध्यान दें।

6. लुक पर ध्यान दें, कॉन्फिडेंट रहें।

7. यदि कोई मना कर दे तो कूल रहें।

8. बिना डिप्रेस हुए विदा लें।

रोमांस : क्या, क्यों, कैसे



रोमांस शब्द के मायने पुराने समय से आज तक काफी बदले हैं मगर सच है कि आज भी यह शब्द एक खूबसूरत एहसास से भर देता है। रूह में एक खुशबू सी उतरती चली जाती है और सहेजकर रखे पुराने खतों को फिर से पढ़ने को जी करने लगता है। एक बहुअर्थी शब्द है रोमांस, जिसका शाब्दिक अर्थ हो सकता है कल्पना। एक प्यारी सी कोई बात, मीठी छेड़छाड़ जो तन-मन में स्पंदन जगाकर रोम-रोम पुलकित कर दे, मन में जोश और उत्साह भरकर जीने की इच्छा बढ़ा दे। यह सिर्फ एक अहसास है, जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। इसे सिर्फ दिल की गहराइयों से ही महसूस किया जा सकता है।

रोमांस जन्मा कैसे
रोमांस की उत्पत्ति कब और कहाँ हुई, यह कहना थोड़ा मुश्किल है। पहले-पहल इसका आम जीवन से कोई ताल्लुक नहीं था, राजा-रानियों की प्रेम कथाओं में इसका हल्का-फुल्का जिक्र होता था। फिर लिखित साहित्य आया। उसके बाद फिल्मों में रोमांस के हर पहलू का खूब खुलकर फिल्मांकन किया गया।

पहले रोमांचक कहानियाँ या उपन्यास पढ़ना, फिल्में देखना अच्छा नहीं समझा जाता था, रोमांस की तो बात ही दूर थी। यह सचमुच कल्पना ही था। इसलिए आम आदमी हमेशा हिचक के घेरे में रहा। वह रोमांस के रोमांच से अभिभूत तो रहा, मगर न तो उसे खुलकर स्वीकार सका और न महसूस कर सका।

रोमांस एक चुंबकीय आकर्षण है, इसलिए इसने इतनी जल्दी सबको अपने सम्मोहन में जकड़ लिया है। अकेलेपन की उदासियों में रोमांस ही है, जो जीवन में रंग भरने लगा है। एक तो रिश्तों की बढ़ती बराबरी व दोस्ती के तकाजे के चलते आए खुलेपन से रोमांस की संभावनाएँ बढ़ी हैं, दूसरी तरफ, जीवन की बढ़ती व्यस्तताओं से उपजी, निराशा, ऊब, तनाव व अवसाद के चलते मनोचिकित्सकों ने भी रोमांस के महत्व को पहचना है और उसे मानवीय जीन का अनिवार्य हिस्सा बताया है।


आखिर रोमांस है क्या
रोमांस एक अहसास है जिसकी गहराई को सिर्फ महसूस किया जा सकता है। किसी प्रिय से निगाहे मिलने पर दिल की धड़कनें तेज हो जाती हैं और तन-मन में स्पंदन सा महसूस होता है, इसे ही तो रोमांस कहते हैं। रोमांस शब्दों का मोहताज नहीं है, यह आँखों और इशारों की भाषा खूब समझता है। रोमांस के बिना प्रेम का अस्तित्व नहीं होता।

प्रेम की डगरिया का नाम है रोमांस। प्रेम अगर मंजिल है तो रोमांस पगडंडी, जो प्रेम की परिपक्वता प्रदान करती है। यह कोई जरूरी नहीं कि जिससे आप प्रेम करते हों वह भी आपसे उतनी शिद्दत से प्रेम करता हो। रोमांस प्रेम में तभी परिवर्तित होता है जब एक-दूसरे के प्रति रोमांस के भाव दोनों के मन में जागे वरना कामनाएँ सिर्फ रोमांस बनकर रह जाती हैं। रोमांस दो चाहने वालों को एक-दूसरे के करीब लाने, उनमें प्रेम जगाने का एक माध्यम है।

रोमांस का अर्थ केवल प्यार-मोहब्बत और दैहिक संसर्ग नहीं, बल्कि रोमांस का अर्थ है अपने लक्ष्य को पाने के लिए निष्ठा व प्रेम। कोई भी व्यक्ति अपने मकसद को तब तक नहीं पा सकता जब तक उसके अंतर्मन में उस काम से प्यार और उसे कर पाने की इच्छा और लगन नही होगी। रोमांस एक तड़ित तरंगित गतिमयता है, दीवानगी है, एक पागलपन, एक सिरफिरापन है। इसके बाद ही कलाकार व दीवानों को अपने उद्देश्य की प्राप्ति होती है।

रोमांस की बदलती परिभाषाएँ
पुराने समय का रोमांस शायद कहीं अधिक रोमांटिक था, लुक-छिपकर एक-दूसरे को निहारना, लंबी सैर पर निकल जाना, कॉफी की चुस्कियाँ लेना और एक-दूसरे का हाथ पकड़ना आदि। स्पर्श के इस रोमांच को प्रेमी युगल कई दिनों तक नहीं, महीनों-सालों तक महसूस करते थे।


रोमांस के नाम पर मन में जोश और उत्साह होता था। रोमांस का जिक्र आते ही होठों पर खिली शर्मीली मुस्कुराहट तो दिखाई दे जाती थी, लेकिन मन में फूटते लड्डुओं का अंदाजा मात्र चेहरे को देखकर लगानमुश्किहोतथा

दूसरी तरफ आधुनिक रोमांस की गति इतनी तेज है कि प्रेमी युगल के पास उसे महसूस करने के लिए, उन क्षणों को जीने के लिए समय ही नहीं है। आज का हाईटेक रोमांस भाषा-प्रधान है, जो ई-मेल, चैटिंग और एसएमएस द्वारा तुरंत संचारित होता है। आज रोमांस को समय और दूरी का मुँह नहीं ताकना पड़ता। अब रोमांस का स्थान डिस्को, पार्टियों, डेटिंग आदि ने ले लिया है जहाँ शोरशराबे में इच्छाएँ-कामनाएँ पहले ही खत्म हो जाती हैं।

अंत में यही कहा जा सकता है कि रोमांस का भाव स्थायी नहीं है, बल्कि संचारी है। जो किसी विषय, वस्तु या फिर व्यक्ति विशेष के बारे में सोचते हुए तन-मन में संचारित होता है और कुछ भी पलों में गायब भी हो जाता है। प्रेम और रोमांस दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। इनके बिना जीवन ऐसे रेगिस्तान के समान है, जहाँ कभी कुछ नहीं खिल सकता।

लव, अट्रेक्शन या इन्फेचुएशन

प्रेम और आकर्षण के बीच अंतर

जीवन में हम बहुत से लोगों से मिलते हैं। कुछ आपको हँसाते हैं, कुछ के साथ आप बहुत मजा करते हैं और कुछ का डील-डौल देखकर ही अच्छा लगता है, लेकिन किसी में वो बात नहीं रहती जो आप अपने सपनों के राजकुमार के बारे में सोचती रही हैं। न जाने आप कितने लोगों से मिल चुकी हैं, लेकिन फिर भी आपकी तलाश अधूरी है।

जब ऐसी स्थिति आ जाती है तब लगता है कि काश अपने मनपसंद साथी को बनाना आपके हाथ में होता और आप हर व्यक्ति में से अच्छे-अच्छे गुण चुनकर एक परफेक्ट साथी चुन लेतीं, लेकिन यह हमेशा याद रखिए कि दुनिया का कोई भी व्यक्ति परफेक्ट नहीं होता और आप किसी से पूरी तरह बदलने की आशा भी नहीं कर सकती हैं।

ऐसी दुविधापूर्ण स्थिति में आपको प्रेम और आकर्षण के बीच अंतर समझना सबसे ज्यादा जरूरी हो जाता है, क्योंकि महज आकर्षण के धरातल पर किसी भी रिश्ते की नींव मजबूत हो ही नहीं सकती है। अब आपके सामने सबसे बड़ी समस्या अपने आदर्श साथी को लेकर है, यह भी सुलझ जाएगी यदि आप तय कर लेंगी कि आखिर वास्तविक जिंदगी में आप क्या चाहती हैं

रविवार, 2 मई 2010

रात जाएगी सुबह आएगी

रात जाएगी सुबह आएगी नई फिर से
दुख से मत डरना कि आएगी हर खुशी फिर से।

बहक गए हैं कि जो लोग अपने रस्तों से
बना दे काश कोई उनको आदमी फिर से।

एक अरसे से जो रूठी थी ये किस्मत मुझसे
आज लौटा के गई वो मेरी हँसी फिर से।

पत्तियाँ झर गई पेड़ों पे उदासी छाई
कोई बतलाए ये कैसे हवा चली फिर से।

सच कहा है ये किसी ने कि गोल है दुनिया
ये न सोचा था कि मिल जाएँगे कभी फिर से।

याद आए वो बहुत आज याद आए वो
आज महफ़िल में खली उनकी ही कमी फिर से।

सूनी दीवारों पे टँगते गए जो चित्र कई
ले के आए मेरी आँखों में इक नमी फिर से।

खुदकुशी करना

खुदकुशी करना बहुत आसान है,
जी के दिखला, तब कहूँ इनसान है।

सारी दुनिया चाहे जो कहती रहे,
मैं जिसे पूजूँ वही भगवान है।

चंद नियमों में न यो बँध पाएगी,
ज़िंदगी की हर डगर अनजान है।

टिक नहीं पाएगा कोई सच यहाँ,
झूठ ने जारी किया फ़रमान है।

भीगा मौसम कह गया ये कान में,
क्यों गली, दिल की तेरे वीरान है।

औरतें

खुद शराब हैं
मगर पीने से
डरती है
मुहब्बत में
मर जायें
सौ-सौ बार
मगर बुड्ढी होकर
जीने से डरती है।

प्रवृत्ति

महंगाई कितनी ही
बढ़ जाए,
दिखावे की बेड़ियाँ
नहीं तोड़तें हैं,
नमक का भाव
आसमान चढ़ जाए पर
दूसरों के जली पर
छिड़कना नहीं
छोड़ते हैं।

औरतें कुछ परिभाषाएँ

लुगाई का लोग
कर्मों का भोग
लोग की लुगाई
समझो मुसीबत आई,

पति की पत्नी
पर कतरनी,
पत्नी का पति
मारी गई मति

हजबैंड की वाइफ
टेंशन में लाइफ़
वाइफ का हज़बैण्ड,
बेलन से बाजे बैंड,

सजनी का साजन
बना कोपभाजन,
साजन की सजनी
मनभर वजनी

गुलाम की जोरू
बड़ी कानफोडू
जोरू का गुलाम
समझो काम तमाम

कविता खतम
राम-राम।

चमचा

थाली से छोटा होता है चमचा
डोंगे से छोटा होता है चमचा
कटोरी से भी छोटा है चमचा
पर साहब की थाली में पड़ा इतराता
बहुत बड़ा होता है चमचा।

साहब को ठेके के चावल खिलाता है चमचा
साहब को कमीशन का हलवा खिलाता है चमचा
तन्वंगी भिंडी का स्वाद चखाता है चमचा
शाही ठाठ से पनीर खिलाता है चमचा

बहुत त्यागी होता है चमचा
साहब का भरता पेट
खुद खाली पेट रहता है चमचा
साहब के मुँह में आ जाए कंकर अगर
हँसकर झूठन उठाता है चमचा

खुशी से नहीं फूला समाता है चमचा
जब साहब के हाथों में होता है चमचा
जब साहब के ओठों को छूता है चमचा
बौने नजर आते हैं सब
साहब हो जाता है, साहब का चमचा

साहब के साहब की पार्टी में
छोटा बड़ा सब तरह का होता है चमचा।
जगमगाते विदेशी बर्तनों के बीच
टेबलपर चाँदी का सजता है चमचा।
छोटे मोटे दोस्तों की पार्टी के बीच
स्टील का चलता है चमचा
जान पर खेलने वाले मूर्ख सेवकों को
मिलता है प्लास्टिक का चमचा

मैं तो हाथ से खा लूँगा साहब बोला चमचा
चमचे को नसीब नहीं होता है चमचा
साहब के कच्चे कानों में कुछ फुसफुसाता है चमचा
पर निंदा का रस पिलाता है चमचा
सावन का अंधा हो जाता है साहब
कुछ भी नजर नहीं आता
नजर आता है साहब को बस साहब का चमचा

घर में अचानक टपक पड़े साहब
फूला नहीं समाता है चमचा
सारा घर बन जाता है चमचे का चमचा
मेरे साहब आज मेरे घर आए
टेलिफोन पर ताजा समाचार पढ़कर
चमचों को सुनाता है चमचा

चमचमाती दुनिया में प्यारे
हर कोई किसी न किसी का चमचा
कोई अपनी पत्नी का चमचा
कोई दूसरे बीवी का चमचा
कोई साहब का चमचा, कोई साहिबा का चमचा।

प्यार का रंग

दुनिया बदली
मगर प्यार का रंग न बदला

अब भी
खिले फूल के अन्दर
खुशबू होती है
गहरी पीड़ा में अक्सर हाँ
आँखें रोती हैं
कविता बदली, पर
लय-छंद-प्रसंग नहीं बदला

वर्षा होती
आसमान में बादल
घिरने पर
पात बिखर जाते हैं
जब भी आता है पतझर
पर पेड़ों से
पत्तों का आसंग नहीं बदला

हरदम भरने को उड़ान
तत्पर रहती पाँखें
मौसम आने पर
फूलों से
लदती हैं शाख़ें
बदली हवा
सुबह होने का ढंग नहीं बदला

मौसम

दिन अंधेरा, रात काली
सर्द मौसम है

दहशतों की कैद में
लेकिन नहीं हम हैं!

नहीं गौरैया
यहाँ पाँखें खुजाती है
घोंसले में छिपी चिड़िया
थरथराती है

है यहाँ केवल अमावस
नहीं, पूनम है!

गूँजती शहनाइयों में
दब गईं चीखें
दिन नहीं बदले
बदलती रहीं तारीखें
हिल रही परछाइयों-सा
हिल रहा भ्रम है!

वनों को, वनपाखियों का
घर न होना है
मछलियों को ताल पर
निर्भर न होना है

दर्ज यह इतिहास में
हो रहा हरदम है!

प्रशांत

सोमवार, 26 अप्रैल 2010

नमन में मन

आज फिर
हरसिंगार झरते हैं
माँ के आशीष रूप धरते हैं
पुलक पुलक
उठता है मन
शाश्वत यह कैसा बंधन
नमन में झुकता है मन
नमन में मन [Photo] थिरकते हैं
साँझ की गहराइयों में
तुम्हारी पायलों के स्वर
नज़र आता है चेहरा
सुकोमल अप्सरा सा
उठाकर बाँह
उँगलियों से दिखाती राह
सितारों से भरा आँगन
नमन में मन [Photo] लहरता है
सुहानी सी उषा में
तुम्हारी रेशमी आँचल
हवा के संग
बुन रहा वात्सल्य का कंबल
सुबह की घाटियों में
प्यार का संबल
सुरीली बीन सा मौसम
नमन में मन [Photo] बसी हो माँ
समय के हर सफ़र में
सुबह सी शाम सी
दिन में बिखरती रौशनी सी
दिशाओं में
मधुर मकरंद सी
दूर हो फिर भी
महक उठता है जीवन
नमन में मन

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

आज फिर

आज फिर से धूप चढ़ आई है छत पर मेरी
हसरतों को रौशनी से है छुपाया आज फिर
कमजोर हाथों की लकीरें हैं, मगर मिटती नहीं
कह कर यही दिल को है बहलाया आज फिर
और कुछ खोया या पाया, क्या पता? हूँ बेखबर
जिंदगी से एक दिन हमने गंवाया आज फिर

बुधवार, 21 अप्रैल 2010

इश्क में जो कुछ

इश्क में जो कुछ
होना था
वोही होने लगा

घूम की वादी में
ख़ुशी का कारवां खोने लगा
इश्क में जो कुछ
ना होना था
वोही होने लगा
इश्क में जो कुछ
ना होना था
वोही होने लगा

कौन समझेगा मुहब्बत की
भला मजबूरियाँ
कौन समझेगा मुहब्बत्त की
भला मजबूरियाँ

दो दिलों की चाहतें
दुनिया की नामंजूरियाँ
मुस्कुराने ही से पहले
प्यार क्यूँ रोने लगा

इश्क में जो कुछ
ना होना था
वोही होने लगा
इश्क में जो कुछ
ना होना था
वोही होने लगा

सामने आँखों के मेरे
इश्क का अंजाम है
सामने आँखों के मेरे
इश्क का अंजाम है

है अगर ये ज़िन्दगी तो
मौत किस का नाम है
रंज घूम जागे
नसीबा इश्क का सोने लगा

इश्क में जो कुछ
ना होना था
वोही होने लगा
इश्क में जो कुछ
ना होना था
वोही होने लगा

घूम की वादी में
ख़ुशी का कारवां खोने लगा
इश्क में जो कुछ
ना होना था
वोही होने लगा

jis ki rachna itni sundar

yakeen nahi kyun kar hoga

jis ki rachna itni sundar
wo kitna sundar hoga
wo kitna sundar hoga
ho aa..aa..

tujhe dekhne ko main kya
har darpan tarsa karta hai
tujhe dekhne ko main kya
har darpan tarsa karta hai

jyun tulsi ke birwa ko
har aangan tarsa karta hai
har aangan tarsa karta hai

ang ang tera ras ki ganga
ho..ho..
ang ang tera ras ki ganga
roop ka wo saagar hoga
jis ki rachna itni sundar
wo kitna sundar hoga
wo kitna sundar hoga
ho..ho..

raag rang ras ka sangam
aadharat prem kahaani ka
raag rang ras ka sangam
aadharat prem kahaani ka

mere pyaase man mein yoon utri
jyun ret mein jharna paani ka
jyun ret mein jharna paani ka
apna roop dikhaane ko
apna roop dikhaane ko

tere roop mein khud ishwar hota
jis ki rachna itni sundar
wo kitna sundar hoga
wo kitna sundar hoga
wo kitna sundar hoga
ho aa..aa..

मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

मुह्बत्त

मुह्बत्त एक ऐसा जज्बा है जिसकी कोपलें हर दिल में फूटती है लेकिन परबाना नहीं चढ़ पाता है क्यूंकि हालत पांब के जंजीर बन जाती है और बक्त मरहम का काम करता है मगर कुछ लोग मुह्बत्त के लिए ही धरती पर आते है और बड़ा से बड़ा तूफान भी उनका रुख नहीं बदल पाती है और गुजरता हुआ समय उंके जख्मो को नासूर कर देता है और बे बेक़रार दिल को आराम देने के लिए दुनिया से टकराने का हौसला रखते है.

यकीं नहीं आता

नजर जो कोई भी तुझ सा हसीं नहीं आता
किसी को क्या मुझे खुद भी यकीं नहीं आता

तेरा ख्याल भी तेरी तरह सितमगर है
जहाँ पे चाहिए आना बहीं नहीं आता

जो होने बाला है अब उसकी फिक्र क्या कीजे
जो हो चूका है उसी पर यकीं नहीं आता


यह मेरा दिल है की मंजर उजाड़ बस्ती का
खुले हुए सभी दर मकीं नहीं आता

बिछुरना है तो बिछड़ जा इशी दोराहे पर
की मोड़ आगे सफ़र में कहीं नहीं आता